१६ जाने, २०१३

हाँ आखिर हमने जीना सिख लिया

 

पलट के देखती हु तो जिंदगी के पन्ने
१० पन्ने   चलते चलते स्कुल के दप्तर(bag) का बोज कभी बोज नहीं लगा
20 पन्ने  तक कालेज-करीअर  में पता ही नहीं चला
30 वे पन्ने  तक दिलका दिल से मिलन हुआ और कब  साथ-साथ  चल पड़े पता ही नहीं चला
40 वे पन्ने  तक पहुँचते-पहुँचते जिगर का टुकड़ा   बड़ा होने लगा और कहने लगा 'माँ ये आपके लिए', भर आती  है ऑंखे उसे  देखकर
हाँ,   फिरभी  हमने तो जिना  कब का ही  सिख  लिया उन अपनों के संग

पलट के देखती हु जिंदगी के पन्ने
मेरी  कुछ यादें आप सबके  पास पड़ी है
आपने आपके जिन्दगीके दिए हुए लम्हे  अभी भी याद  है और याद रखना चाहती हूँ 
उन लम्हों को पीछे  छोड़कर कबकी आगे आ  गई है जिंदगी
हाँ फिरभी हमने तो  जीना  सिख ही लिया ना  उन यांदो के  संग

पलट के देखती हु जिंदगी के पन्ने
कभी गहरी धुप थी, कभी हल्किसी छाव थी
कभी समुन्दरकी  लहरों ने  अपने आपमें समाना चाहा  तो कही लहरे किनारेसे ही वापस चल दी
मत्सर को, प्रेम को , ईगो  को, जेलसी को अपने ही फ़िल्टर से दुसरोंको देखना चाहा
उनका नजरिया कभी समज़ ही न पाई
हाँ फिर भी तो हमने जीना सिख लिया ना  उन  के अटूट  विश्वास के संग

रुक के देखती हूँ
तो लगता है जिंदगी में चाहिए वो  मिला फिर भी क्यों लगता है उन्हें खोने का डर
कभी माँ -बाप को खोने का डर
कभी अपनों को खोनेका डर
कभी अपने आप को खोने का डर
हाँ फिरभी हमने तो जीना सिख ही लिया ना उस डर के संग

फिरभी , क्यू  ऐसा लगता  है
लगता है  के,    .......................  लगता है के  ........................

जिंदगी................. थम सी  जाये  इस मोडपर!!!!!!
                                                    

 

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